Monday, 18 November 2013

अब बनेंगी जूट की सड़कें

by:- ashish garg 
भारत में अब शीघ्र ही जूट की सड़कें बनाई जाएँगी। इस तकनीक को आई आई टी खड़गपुर के दो वैज्ञानिकों ने विकसित किया है। उनके अनुसार इनसे बनने वाली सड़कें मज़बूत होंगी, भारत के मौसम के अनुकूल होंगी और समय के साथ उनका क्षय नहीं होगा क्योंकि जूट केवल सीधे धूप में ख़राब होता है, अन्यथा नहीं। यह सड़के प्रकृति और पर्यावरण के लिए सबसे अनुकूल मानी गई हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार यह तकनीक दलदली भूमि, बलुई मिट्टी, ज़्यादा नमी वाली मिट्टी और बाढ़ प्रभावित इलाकों में बहुत सफल होगी, जहाँ आमतौर पर तारकोल वाली सड़कें सफल नहीं हो पाती।

कहाँ बन रही हैं जूट की सड़कें

भारत जैसे कृषि प्रधान और बड़ी ग्रामीण आबादी वाले देशों में यह तकनीक बहुत जल्दी लोकप्रिय हो जाने की संभावना है। भारत के ग्रामीण विकास मंत्रालय ने जूट से सड़क की तकनीक का लाभ देखते हुए पाँच राज्यों में पायलट परियोजनाएँ शुरू करने की मंजूरी दे दी है। इस तकनीक का विकास राष्ट्रीय जूट निर्माण विकास परिषद और केंद्रीय सड़क अनुसंधान संस्थान ने संयुक्त रूप से किया है। प्रयोग के तौर पर जूट से ग्रामीण क्षेत्रों की सड़क बनाने की योजना प्रारंभ हुई है।
केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री डॉ रघुवंश प्रसाद सिंह और मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों ने पिछले सप्ताह जूट से सड़क बनाने की तकनीकी प्रस्तुति को दो दौर में देखा। तकनीक से प्रभावित होकर डॉ सिंह ने असम, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, उड़ीसा और पश्चिम बंगाल में इस तकनीक से सड़क बनाने की मंजूरी दी। इन राज्यों में वर्ष २००५-०६ के दौरान ४७ ८.४ किलोमीटर सड़क जूट से बनाई जाएगी। ग्रामीण क्षेत्रों में पहले से चल रही प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना (पी एम जी एस वाई) के तहत इस तकनीक को शामिल किया गया है। इस पर पहले चरण में २२ करोड़ स्र्पए की लागत आएगी। बताया गया है कि पुरानी तकनीक से तैयार होने वाली सड़क की लागत से जूट तकनीक से सड़क निर्माण की लागत प्रत्येक किलोमीटर पर पाँच लाख रुपए कम है। इस हिसाब से ज़रा सोचें - १००० किमी लंबी सड़क बनाने में ५० करोड़ की बचत।

तकनीक

जूट से सड़क बनाने की तकनीक खड़गपुर आईआईटी के मोहम्मद अज़ीज़ और रामस्वामी ने विकसित की है। इस तकनीक की अनुशंसा इंडियन रोड़ कांग्रेस फॉर स्टैंडर्डाइजेशन ने पहले ही कर दी थी। हालाँकि सबसे पहले जूट टेक्सटाइल तकनीक की अवधारणा १९२० में स्कौटलैंड में पैदा हुई, लेकिन चूँकि स्कॉटलैंड में अधिक जूट पैदा नहीं होता था। इसलिए तकनीक सड़क पर उतर नहीं सकी। १९३४ में कोलकाता शहर में जूट का इस्तेमाल कुछ सड़कों पर पहली बार किया गया था। लेकिन जूट से सड़क बनाने की तकनीक पर १९८० से गंभीर अनुसंधान शुरू हुआ और लगभग २५ वर्ष में यह तकनीक तैयार हुई है।

विधि

सड़क बनाने के लिए जूट की लगभग आधा इंच मोटाई की लंबी-लंबी जमावट फैक्ट्री में की तैयार जाएगी जिसे 'जूट मैट' कहा जा सकता है, फैक्ट्री में 'जूट मैट' के थान तैयार किए जाएँगे। इसके बाद मिट्टी की सड़क तैयार की जाएगी। उस पर जूट मैट बिछा दिया जाएगा। फिर मिट्टी की मोटी परत पर, इंर्ट की जमावट की जाएगी और उसके ऊपर तारकोल की पतली परत डाल दी जाएगी। इस तरह जूट की सड़क तैयार हो जाएगी। रामास्वामी के अनुसार यह सड़क जितनी पुरानी होगी वह उतनी ही मज़बूत होती जाएगी। इसकी वजह है कि जूट पानी या नमी में कभी नहीं सड़ता। जूट सिऱ्फ तेज़ धूप या गर्मी में सड़ता और टूटता है। इस विधि से सड़क बनाने पर जूट सीधा धूप और गर्मी के संपर्क में नहीं आएगा अत: इसके ख़राब होने की संभावना बिलकुल नहीं है। वैज्ञानिकों का दावा है कि जूट से बनाई गई सड़क की देखरेख या रखरखाव की भी ज़रूरत नहीं है।

अर्थव्यवस्था

डॉ ऱघुवंश प्रसाद सिंह ने इस तकनीक का प्रदर्शन देखने के बाद कहा कि इस पर बजट की कमी नहीं होने दी जाएगी। अभी जिन पाँच राज्यों में प्रयोग शुरू किया जा रहा है, यदि वहाँ यह सफल होता है तो फिर इसे देश के अन्य ग्रामीण क्षेत्रों में शुरू किया जाएगा।
उन्होंने कहा, "प्लास्टिक कचरे से सड़क बनाने और तारकोल-मिट्टी मिश्रण से सड़क बनाने की तुलना में गांवों की सड़क जूट से बने और सफल हो तो इससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था मज़बूत होगी।"
विशेषज्ञ मानते हैं कि आज जूट उत्पादक किसान और उद्योग बदहाली में है। ऐसे में यह तकनीक सफल होती है, तो जूट उद्योग के दिन बदल जाएँगे और पर्यावरण के क्षेत्र में भी हम प्रकृति की ओर एक नया कदम बढ़ाएँगे।

No comments:

Post a Comment